बह चला है खून में जो एक बहाव सा है तू
न दे किसी को जो कभी, एक सुझाव सा है तू
था दर्द तू तूने ने लिखी ग़मों की दास्तान
न दे किसी को जो कभी, एक सुझाव सा है तू
था दर्द तू तूने ने लिखी ग़मों की दास्तान
इन झुर्रियां में उम्र के एक पड़ाव सा है तू
होड़ थी हर दर्द में , मुझे दर्द दे कोई
चर्चे बड़े है शहर में कि एक चुनाव सा है तू
गर्म, मौसम-ए-हिज्र का अब के ज़रा हुआ है
जल रहा हो यादों का जैसे अलाव सा है तू
बदन छलनी हो गया रूह भी छलनी रही
सुलग रहा सदियों से जो हरे से घाव सा है तू
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