हिस्सों में बाँट ली थी मैंने, ज़िंदगी जनाब
अच्छी थी वो गुज़र गई , अभी दौर है ख़राब
उठाया क़र्ज़ वस्ल का, कुछ हिज़्र लिया उधार
ज़िंदगी कुछ इस तरह, चुकाया तेरा हिसाब
ये ज़िंदगी गुज़र गई, किए न कुछ सवाल
मौत मुझसे माँगती है , कौन से जवाब
नफ़रतों का दौर है, ग़ौर कीजिए साहब
दुश्मन चार सू है , पहने दोस्ती का नक़ाब
दवा न अब असर करे, दुआ दे गई जवाब
आदमी की आदमियत भी, पी गई शराब
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