10 April 2016

हिस्सों में बाँट ली थी मैंने, ज़िंदगी जनाब


हिस्सों में बाँट ली थी मैंने, ज़िंदगी जनाब

अच्छी थी वो गुज़र गई , अभी दौर है ख़राब



उठाया क़र्ज़ वस्ल का, कुछ हिज़्र लिया उधार

ज़िंदगी कुछ इस तरह, चुकाया तेरा हिसाब



ये ज़िंदगी गुज़र गई, किए न कुछ सवाल

मौत मुझसे माँगती है  , कौन से जवाब



नफ़रतों का दौर है, ग़ौर कीजिए साहब

दुश्मन चार सू है , पहने  दोस्ती का नक़ाब



दवा न अब असर करे,  दुआ दे गई जवाब

आदमी की आदमियत भी,  पी गई शराब

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