उड़ना है मुझको उन्मुक्त पंछियों सा
अपनी ज़मीं को मेरा आसमान कर दो
सदियों से बैठी हूँ तेरी मैं आस लगाए
निगह-ऐ-करम इधर मेहरबान कर दो
धड़कन से तेरी कुछ बात-वात करनी है
तुम अपने दिल को मेरा राज़दान कर दो
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दिन चला है कितनी ख़्वाहिशों का सामाँ लेकर रात भी ख़्वाबों को मिलने का वादा कर आई है
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