9 January 2016

हो गया ये सफ़र, जैसे कोई अँधा कुआँ

नर्म  फाहा, रूहे बदन, ये  हुआ, 
गर्म सी धूप सा जो  तूने छुआ,


क्यूँ  लगा फ़िर मुझे, कोई मेरा हुआ। 

रेत हूँ, रेत पर मैं  बिख़र गई,
रूख हवा का जब जिस तरफ़ हुआ 


 बिखरी यूँ चार -सू -जैसे कोई दुआ। 

थी सफ़र,  बेख़बर राह  चलती रही,
उम्र थी, उम्र भर , यूँहीं ढलती रही,
हो गया ये सफ़र, जैसे कोई अँधा कुआँ।   

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