इन परिंदो को सजा दो कि इन्होने खता की है
इन समाजो के बनाई हुई रस्मों की धता की है
इन परिंदो को सजा दो ......
कोई मज़हब नहीं इनका, क्यूँ नहीं, जात कोई
इनको सूली पे चढ़ा दो की इन्होंने ख़ता की हैं
इन परिंदो को सजा दो ......
क्यूँ भला मुल्कों की सरहद को ये यूँ, लाँघ गए
पर क़तर दो परिन्दों के कि इन्होंने ख़ता की है ...
इन परिंदो को सजा दो ......
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