10 December 2015

मुजरिम हूँ, तेरी यादो की, पैरोल दिला दो

 

मुजरिम हूँ, तेरी यादो की, पैरोल दिला दो
थक गई हूँ, तुझे जीकर, मुझे- मुझसे, मिला दो .... 

है ज़िन्दगी क्या, महज़ हादसों का सफ़र है .. 
इन हादसों से गुजरने का, कोई तो सिला दो .... 

उम्र का यूँ ,हाथ थामे, निकली थी मैं कभी,
मेरे बचपन से एक रोज़, मुझको तो मिला दो ....  

मुद्दतों से, मेरी आँखों से, फरार है सपने 
सपनो को आँखों से, कोई क़रार दिला दो .... 

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