ज़िंदगी को नई ज़िंदगी मिल गई मेरी शामों को जैसे सहर मिल गई
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कोई ग़िला .. फिर भी नहीं .. क़ि तू हमसफ़र .. मेरा नहीं.. मेरी दुआओ को तेरी .. बंदगी मिल गई ज़िंदगी को .. नई ज़िंदगी मिल गई
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शामों को तेरी .. सहर से मेरी ..
होगा भला ...क्या वास्ता ??
तेरे मंज़र ..पूछे क्यूंकर ..
मेरी गलियों का ही रास्ता ...
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