29 October 2015

सुनो ना अम्माँ ! मुझे भी चाँद बना दो।


साँझ ढले और रात जो आए,
लल्ला मेरा, चंदा को तकता जाए .

टुकुर टुकुर देखे  वो चंदा,
सोचे, पकड़ें कैसे इसे,
डाल के फन्दा !

लल्ला मेरा, फिर सवाल कुछ पूछे,
जिनके मुझको, कोई जवाब ना बुझे .

बोले ,अम्माँ  -तुम बोलो !!
चंदा भला क्यूँ चोकोर नहीं है?
गोल गोल है, कोई छोर नहीं है!

नहीं है आँखें कोई, कोई बाल
हुआ ये कैसे उस का हाल ?

इसकी अम्माँ क्यूँ इसको ना डाँटे,
दिन भर ये सोए और रात को जागे .

हर माह मिले इसे, कितनी छुट्टी .
मैं मारूँ तो तुम, होती क्यूँ क़ुट्टी?

कभी है काला, कभी है गोरा !
कहाँ है इसका रैन बसेरा ? 

टँगा टँगा ये थक नहीं जाता ?
अम्माँ बतलाओ, ये क्या है खाता ? 


सुनो ना अम्माँ ! मुझे भी चाँद बना दो।
आसमान की सैर करा दो। 

मैं मुसकाऊ, उसे उर से लगाऊँ।
लल्ला पे अपने मैं वारी जाऊँ।
ये बातें उसे कैसे समझाऊँ ?

लल्ला पे अपने ,मैं बलिहारी जाऊँ !



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