साँझ ढले और रात जो आए,
लल्ला मेरा, चंदा को तकता जाए .
टुकुर टुकुर देखे वो चंदा,
टुकुर टुकुर देखे वो चंदा,
सोचे, पकड़ें कैसे इसे,
डाल के फन्दा !
लल्ला मेरा, फिर सवाल कुछ पूछे,
लल्ला मेरा, फिर सवाल कुछ पूछे,
जिनके मुझको, कोई जवाब ना बुझे .
बोले ,अम्माँ -तुम बोलो !!
बोले ,अम्माँ -तुम बोलो !!
चंदा भला क्यूँ चोकोर नहीं है?
गोल गोल है, कोई छोर नहीं है!
नहीं है आँखें कोई, न कोई बाल
हुआ ये कैसे उस का हाल ?
इसकी अम्माँ क्यूँ इसको ना डाँटे,
इसकी अम्माँ क्यूँ इसको ना डाँटे,
दिन भर ये सोए और रात को जागे .
हर माह मिले इसे, कितनी छुट्टी .
हर माह मिले इसे, कितनी छुट्टी .
मैं मारूँ तो तुम, होती क्यूँ क़ुट्टी?
कभी है काला, कभी है गोरा !
कभी है काला, कभी है गोरा !
कहाँ है इसका रैन बसेरा ?
टँगा टँगा ये थक नहीं जाता ?
टँगा टँगा ये थक नहीं जाता ?
अम्माँ बतलाओ, ये क्या है खाता ?
सुनो ना अम्माँ ! मुझे भी चाँद बना दो।
सुनो ना अम्माँ ! मुझे भी चाँद बना दो।
आसमान की सैर करा दो।
मैं मुसकाऊ, उसे उर से लगाऊँ।
मैं मुसकाऊ, उसे उर से लगाऊँ।
लल्ला पे अपने मैं वारी जाऊँ।
ये बातें उसे कैसे समझाऊँ ?
लल्ला पे अपने ,मैं बलिहारी जाऊँ !
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