1 October 2015

लैंप पोस्ट

मैं ,लैंप पोस्ट,
इस चौराहे पर
दसियों साल से
युहीं खड़ा हूँ। 

कहने को तो 
रोशनी देता हूँ। 
सोचता हूँ,  अक्सर -
काश ! भर देता, 
उजाला उन आँखों में 
जो मेरे  नीचे बैठ भीख 
मांगती है। 

काश !! उन आँखों  में 
उम्मीद की किरण दे पाता,
उन ज़िंदगी को,  
रोज़ थक कर ज़िन्दगी से 
उदास हो, 
मेरे उजालो में  सो जाती है। 


बरसो से देखता आया  हूँ-
वो मैली फटे कपडे, 
वो चिथड़ों में  लिपटा  बचपन,
 जो जाड़ो की सर्द रातो 
में मेरे उजालो  
में सोता है गर्मी की आस मे। 


काश!! मैं सिर्फ लैंप पोस्ट  न होता  !!

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