30 September 2015

प्रस्तावना

प्रस्तावना 
लेखन में रूचि बचपन से ही थी।  उम्र के साथ साथ , ज़िन्दगी के बहुत सारे चेहरे देखे- कुछ अच्छे  तो कुछ बुरे…  बस जो कभी जुबां कह न पाई , कलम ने कह दिया - और बड़े ही पुरज़ोर ढंग से कहा।   कवि ह्रदय था - काँच की तरह था - बड़े सारे दरक पड़े इसमें - फिर भी संजो के रखा।  इसमें मेरा पिता का योगदान सबसे ज्यादा था.. 

ये संकलन-  उन कुछ अधूरी ख्वाहिशों , सपनों, यादों और वो बातें, जो बस मैं अक्सर  खुद से किया करती थी, को कविताओं में पिरोने का एक छोटा सा प्रयत्न है। 

इस संकलन  को मैं अपनी माता श्री श्रीमती शिवकान्ति राठौर को अर्पित करती हूँ।  


धन्यवाद 

संध्या राठौर 

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