तुम मिले जो मुझे, चल पड़े   है सिलसिले।  
वक़्त की शाख पे, गुल नए कुछ खिले।। 
इन निग़ाहों में कैसा, ये सौदा हुआ,
दिल अचानक यूँ, रुक रुक के चलने लगा, 
एक तूफ़ान उठे, जब ये आँखे मिले।  
वक़्त की शाख पे, गुल नए कुछ खिले ।।
एक हरारत सी, जिस्मो में होने लगी, 
कैसी मदहोशी आलम में छाने लगी।  
थरथराते है लब, जब ये लब से मिले।  
वक़्त की शाख पे, गुल नए कुछ खिले ।। 

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