क्यूँ धुआँ है समाँ
मुझको तेरा गुमाँ
होंठ चुप है और आँखे
कर रही है बयाँ
मुझको तेरा गुमाँ
होंठ चुप है और आँखे
कर रही है बयाँ
जब से पाया मैंने तुझको,
हुआ है कुछ मुझे ,
हुआ है कुछ मुझे ,
ज़मीन पे अब नहीं हूँ मैं
पा लिया जब तुझे,
बाँहों में आ थाम ले अब तो
पा लिया जब तुझे,
बाँहों में आ थाम ले अब तो
मुझे ऐ आसमाँ !
हवा सी अल्हड भोली मैं
खुश्बू की हूँ डली
शाख़ पर खिल उठे जैसे
फूल की वो कली
खुश्बू की हूँ डली
शाख़ पर खिल उठे जैसे
फूल की वो कली
महकाऊँगी चार सू मैं
और तेरा जहाँ
और तेरा जहाँ
चाँद भी रात भर मुझको
एकटक देखा करे
एकटक देखा करे
ख्वाब की सिम्फनी हरपल
नींद में गूँजा करे
ख़्वाहिशों के सब मुसाफिर अब
नींद में गूँजा करे
ख़्वाहिशों के सब मुसाफिर अब
ठौर पाए कहाँ
ऐ समुन्दर अपने अंदर तू
अब समा ले मुझको
रेत सा साहिलों पे अब
तू बिछा दे मुझको
छोड़ जाऊँगी ज़माने में
अपने बाक़ी निशाँ
1 comment:
Aap Bahut talented ho! Hats off to your thoughts and flow of words!!!
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