3 August 2015

मैं ग़ज़ल बेहद ही हसीन सी हूँ



मैं ग़ज़ल बेहद  ही हसीन सी हूँ 
मेरी जाँ,  कहने का  सलीका तो सीखो

सुनो,  एक खूबसूरत सी मंज़िल हूँ मैं
हमराह मेरे, इस राह पे चलना तो सीखो

मैं हरफ़ हूँ अहले इश्क़ का, लेकिन
मेरी जान,  सफो पे लिखना तो सीखो

मय हूँ, महकश हूँ, साकी भी मैं हूँ,
मेरे हमदम,   पहले पीना तो सीखो

वक़्त की शाख से गिरता लम्हा हूँ 
इस पल मे मेरी जान जीना  तो सीखो 

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