7 July 2015

ख़त लिखे है बेनाम।

सुनो  मैंने कुछ 
ख़त लिखे है  बेनाम। 

लिखा है मैंने 
कि इस बार 
सावन  भी 
नहीं आया। 
वो भी वादा 
करके गया था,
तेरी ही  तरह।  

लिखा है ,
इस बार दरख़्त भी 
अनमने से है कुछ। 
शायद  ये मौसम 
कुछ वादे ले गया था ,
दे गया था कुछ क़स्मे ,
जो उसने कभी 
निभाई ही नहीं। 

लिखा है  कैसे, 
सर्द चादर ओढ़े ,
ठिठुरती रही  ये रात। 
ओस में भीगी कभी 
नींद में जागी कभी 
मगर 
वो जो आने को थी 
वो सुबह,
वो फिर नहीं आई। 

अब तो शाम को भी 
कुछ दिखाई नहीं देता 
वो उसकी आँखों में 
ये मुआ वक़्त भी 
धूल झोंक गया है 





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