तुझे ही चाहा,
हर इक दफा,
क्यों दे रहा मुझे
इसकी तू, सज़ा …
हर वक़्त हर दम,
किया बस मैंने
ज़िक्र तेरा ……।
फिर, क्यों हो गया
मुझसे तू, ख़फ़ा .....
तेरे ही कदमो के
निशाँ पर चलती
रही, मैं सदा ....
क्यों हो गया सरेराह
तनहा छोड़ तू भी गुमशुदा .......
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