हो रही है शाम ही से
आँखे कुछ और नम।
क्या कहे कतार में
बैठे है कुछ और गम।
हम कही जब मुड गए
रास्तो में जुड़ गए,
कितने ही अजनबी
और, कितने हमदम।
कितने मुश्किल लिए
चले हम, जीने के लिए।
वक़्त ने ढहा दिया हम पे
कुछ और सितम।
जितनी बार गिर गए
उठ के फिर खड़े हुए
ज़िन्दगी तेरा लिए
एक और भरम।
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