8 March 2015

Women's Day - मुझे कुछ कहना है

आज सुबह मैंने
टीवी और अखबार ,जो खोला
हर पन्ना , हर इश्तिहार
ये बोला -
Happy International Women's Day !!

मैं सोचू -
ये कौन बला है ?
आखिर ये क्या
बात  भला है ?

फिर आई मेरी
बात  समझ में।
365  दिनो  में से ,
हमको , एक दिन
आज का  मिला है !

आज अचानक उन्हें
याद  है आया
कि -

 मैं  ही उनकी
आदि शक्ति हूँ !
मैं दुर्गा हूँ ,
मैं लक्ष्मी हूँ।
 मैं ही  माँ हूँ
 मैं जननी हूँ
मैं  ही इस सृष्टि की
उषा और
मैं रजनी हूँ।

मेरे मन में
उठे सवालो के घेरे।
सोच में पड़ गई
मैं  ' साँझ - सवेरे'

तो क्या
बस आज अभी तक
ये हक़ है मेरे ?
खो जायेंगे
कल होते सवेरे ?

फिर ये कल
मुझको  गाली देंगे ?
पल पल मेरा
भोग ये लेंगे?

मौत का कंगन
पहनाएंगे !
acid  मुझ पर
फिकवाएंगे ! ,

धु धु कर के
जलवाएंगे !
दहेज न ल पाने
के कारण
मुझको   बेघर
कर जाएेंगे !


कन्या को जिमाने वाले !
धो धो कर चरण,
पी जाने वाले !
एक पल में
उसी कन्या का
चीर हरण भी  कर जायेंगे।

नहीं चाहिए मुझे
धन और दौलत!
सुन -
जो आज  है तू
 वो  है मेरी बदौलत !


मैं तो  बस  हूँ,
सम्मान  की भूखी
मांगू  इज़्ज़त की
दो रोटी सुखी।


यदि नहीं दे सके
मैंने जो तुमसे माँगा !
होगा नहीं कोई
तुझसा  अभागा !


मुझको मत तुम
अबला समझो !
इसको मत सिर्फ
 एक जुमला समझो !

 वरना  मैं ,
बन जाउंगी  रणचंडी!
तबाह करुँगी
फिर  सारी  सृष्टि !
ऐ  कापुरुष  !
तू फिर मत रोना  !
जब होगी तुझपर
आफत की वृष्टि।












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