जब आज अचानक
घटा ये उमड़ी
ताल मृदंग संग
दामिनी थिरकी।
फिर उमड़ घुमड़
ये बूँदे बरसी।
भीगी राते,
भीगी शामें,
इंसान पुकारा - त्राहिमाम !
प्रभु ! त्राहिमाम !
हे इंद्र देवता!
अब तो लगा दो
भीगी दिन और भीगी रातों पर
ताल मृदंग संग
दामिनी थिरकी।
फिर उमड़ घुमड़
ये बूँदे बरसी।
भीगी राते,
भीगी शामें,
इंसान पुकारा - त्राहिमाम !
प्रभु ! त्राहिमाम !
हे इंद्र देवता!
अब तो लगा दो
भीगी दिन और भीगी रातों पर
पूर्ण विराम!
नारद पहुंचे,
उस कोप भवन में,
जहाँ इंद्र हो रहे
नारद पहुंचे,
उस कोप भवन में,
जहाँ इंद्र हो रहे
देदीप्यमान और
विराजमान।
बोले नारद,
हे इंद्र !
शत शत वंदन।
शत शत प्रणाम।
ये जल,
जो है जीवन समान,
क्यों हर रहे तुम
उस जल से
नर और जर
के जान और प्राण?
क्या आज फिर किसी
वृन्दावन में
नहीं हो रहा
आपका गुणगान ?
क्या आज
उठाया है किसी कृष्ण ने
गोवर्धन पर्वत महान ?
बोले भगवन -
हे ऋषिवर !
कोटि कोटि प्रणाम !
इस विनाश में
मेरा नहीं
कोई योगदान।
खुद मनुष्य ने
स्वयं प्रलय का
किया है
देखो आह्वान !
कहीं काट दिए
इसने तरुवर!
पाटे खेत कहीं,
कही पे सरोवर!
रेत और ईंट के
महल बनाकर,
छीन लिए इसने
पशुओं के भी घर।
एतेव ,हे मुनिवर !
चुकाना होगा अब
इसको दाम !
करना होगा
जल थल वायु का
सम्मान !
फिर मिलेगा माँ धरा को
एक अभय दान !
और समस्त जगत
का फिर होगा कल्याण !
विराजमान।
बोले नारद,
हे इंद्र !
शत शत वंदन।
शत शत प्रणाम।
ये जल,
जो है जीवन समान,
क्यों हर रहे तुम
उस जल से
नर और जर
के जान और प्राण?
क्या आज फिर किसी
वृन्दावन में
नहीं हो रहा
आपका गुणगान ?
क्या आज
उठाया है किसी कृष्ण ने
गोवर्धन पर्वत महान ?
बोले भगवन -
हे ऋषिवर !
कोटि कोटि प्रणाम !
इस विनाश में
मेरा नहीं
कोई योगदान।
खुद मनुष्य ने
स्वयं प्रलय का
किया है
देखो आह्वान !
कहीं काट दिए
इसने तरुवर!
पाटे खेत कहीं,
कही पे सरोवर!
रेत और ईंट के
महल बनाकर,
छीन लिए इसने
पशुओं के भी घर।
एतेव ,हे मुनिवर !
चुकाना होगा अब
इसको दाम !
करना होगा
जल थल वायु का
सम्मान !
फिर मिलेगा माँ धरा को
एक अभय दान !
और समस्त जगत
का फिर होगा कल्याण !
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