एक नगीने की तरह नायाब हो तुम
ज़िंदगी एक सहरा, शादाब हो तुम
दिलकश भी तुम दिलनाज़ भी तुम
हरदिल हो अजीज़, सरताज हो तुम
एक अरसे से कोई मुलाकात नहीं
किस बात पे हमसे नाराज़ हो तुम
हम तुमसे जुड़े जैसे रूह से' बदन
परिंदा है हम , परवाज़ हो तुम
सफ़र से है हम और सफ़र पे है हम
कि अंजाम ही तुम, आगाज़ हो तुम
10 comments:
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में" सोमवार 26 फरवरी 2024 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !
शानदार
आभार सर
सुन्दर
शानदार
आभार सुनील जोशी जी
बहुत सुंदर रचना
बहुत सुंदर रचना
बेहतरीन ग़ज़ल
बहुत सुंदर कहा।
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