कबसे ....करती हूं मैं
खुद से तेरी ...बातें.....
आए
क्यों न दिन वो
ढल गई जिनकी ...
शामें रातें ....
तन्हा किसी सफ़र पे
निकली थी मैं तो...
पहले कभी ...
राहें...
चली थी कितनी
मिली न मंज़िल...
फ़िर भी कभी ...
लिए कुछ "पर" भी
रही कुछ "घर" भी
मिला न अंबर वो
हुए न मेरे ...
वो आहाते....
आए क्यों न ...
दिन वो
ढल गई जिनकी ...
शामें रातें ....
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