जैसे दीवारें बिना सहारे
टूटी सी है, ज़िन्दगी ....
बिन तुम्हारे कैसे गुजारें
रूठी सी है, ज़िन्दगी ....
जाने कहां को मैं चली थी
जाने कहां आ गई ...
एक शहर जो मुझमें बसा था
किस शहर आ बसी ...
गुमशुदा है, लापता है,
मुझ में कहीं, ज़िन्दगी ....
चेहरा नहीं कोई पहरा नहीं कोई
पानी सी बह चली ....
मिल गया जिस राह रहबर
हमसफ़र उसे कह चली ....
इतने चेहरों में से किसका
चेहरा सही, ज़िन्दगी .....
टूटी सी है, ज़िन्दगी ....
बिन तुम्हारे कैसे गुजारें
रूठी सी है, ज़िन्दगी ....
जाने कहां को मैं चली थी
जाने कहां आ गई ...
एक शहर जो मुझमें बसा था
किस शहर आ बसी ...
गुमशुदा है, लापता है,
मुझ में कहीं, ज़िन्दगी ....
चेहरा नहीं कोई पहरा नहीं कोई
पानी सी बह चली ....
मिल गया जिस राह रहबर
हमसफ़र उसे कह चली ....
इतने चेहरों में से किसका
चेहरा सही, ज़िन्दगी .....
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