23 March 2020

बिन तुम्हारे रूठी सी है ज़िन्दगी

जैसे दीवारें बिना  सहारे
टूटी सी है,  ज़िन्दगी ....
बिन तुम्हारे कैसे गुजारें
रूठी सी है, ज़िन्दगी ....

जाने कहां को मैं चली थी
जाने कहां  आ गई ...
एक शहर जो मुझमें बसा था
किस शहर  आ  बसी ...

गुमशुदा है, लापता है,
मुझ में कहीं, ज़िन्दगी ....

चेहरा नहीं कोई पहरा नहीं कोई
पानी सी बह चली ....
मिल गया जिस राह रहबर
हमसफ़र उसे कह चली ....

इतने चेहरों में से किसका
चेहरा सही, ज़िन्दगी .....

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