पेड़ ...
ये अक्सर होते है
बेतरतीब बेढ़ंगे से ...
ये उग आते है
जहां तहां ...
तुड़ जाते है
मुड़ जाते है
झुक भी जाते है
कहीं भी
कितने मर्तबे .....
बेडौल कठोर
खुरदुरी छाले
ऊबड़खाबड़
तने वाले होते है
पसार देते है
टहनियां अपनी
कहीं भी ...कभी भी ..
मगर
कभी गौर किया है ?
बड़ी सलीकेदार होती है
पत्तियां
फूल फल और बीज सारे ..
ज्यामिति के नियमों
में बंधे हुए
भिन्न भिन्न
रंग और गंध समेटे हुए !
मैं...
पत्ती फूल फल और
बीज सम होना चाहती हूं...
हवाओं और पानीयों संग
सुदूर प्रदेशों में
किसी मिट्टी से जुड़
वही पेड़ फिर
बोना चाहती हूं!
सुनो ... ईश्वर ..
मैं...
हर ज़िन्दगी में नई
इक ज़िन्दगी
बोना चाहती हूं !!
सरल शब्दों में
कहूं तो ...
हे ईश्वर ...
हर पुरुषत्व में
यही स्त्रीत्व मैं
पिरोना चाहती हूं ...
किसी पत्ती
किसी फल फूल
या किसी बीज से
एक पेड़
होना चाहती हूं !
1 comment:
बेहतरीन
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