तुम ही कहो न
क्या मैं ख्वाहिश को
देर तक याद में तेरी ....
जागने की ...
इजाज़त दूं ?
तुम ही कहो न
क्या मैं यादों को
खुदा के सजदे सा
नाम और दर्ज़ा
इबादत दूं ?
तुम ही कहो न
क्यों इन हवाओं ने
तुझसे लिपटने की
बदमाशियां की और
शरारत क्यूं ?
तुम ही कहो न
क्या मैं ग़ज़ल हूं ?
इक नज़्म सी हूं मैं
रूबाइयों की सी
क़यामत हूं ?
क्या मैं ख्वाहिश को
देर तक याद में तेरी ....
जागने की ...
इजाज़त दूं ?
तुम ही कहो न
क्या मैं यादों को
खुदा के सजदे सा
नाम और दर्ज़ा
इबादत दूं ?
तुम ही कहो न
क्यों इन हवाओं ने
तुझसे लिपटने की
बदमाशियां की और
शरारत क्यूं ?
तुम ही कहो न
क्या मैं ग़ज़ल हूं ?
इक नज़्म सी हूं मैं
रूबाइयों की सी
क़यामत हूं ?
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