2 November 2019

क्या मैं कयामत हूं

तुम ही कहो न
क्या मैं ख्वाहिश को
देर तक याद में तेरी ....
जागने की ...
इजाज़त दूं ?

तुम ही कहो न
क्या मैं यादों को
खुदा के सजदे सा
नाम  और दर्ज़ा
इबादत दूं ?

तुम ही कहो न
क्यों इन  हवाओं ने
तुझसे लिपटने की
बदमाशियां की और
शरारत क्यूं ?

तुम ही कहो न
क्या मैं  ग़ज़ल हूं ?
इक नज़्म सी  हूं मैं
रूबाइयों की सी
 क़यामत हूं ?

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