24 April 2019

गुल्लक

एक उम्मीद ...
एक ख़ुशी ...
तक़रीबन रोज़ 
डाल ही देती हूँ मैं 
वक़्त की गुल्लक में ...
.
.
.
यही सोच कि 
किसी रोज़ 
जब टूट जाऊँगी मैं 
बेतहाशा ...
जब एक पाई उम्मीद 
न बच रहेगी पास 
...
उस दिन 
इस गुल्लक को तोड़ लूँगी 
थोड़ी ही सही 
ख़ुशियाँ बटोर लूँगी 

#बसयूँही 


#मैं_ज़िंदगी

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