एक उम्मीद ...
एक ख़ुशी ...
तक़रीबन रोज़
डाल ही देती हूँ मैं
वक़्त की गुल्लक में ...
.
.
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यही सोच कि
किसी रोज़
जब टूट जाऊँगी मैं
बेतहाशा ...
जब एक पाई उम्मीद
न बच रहेगी पास
...
उस दिन
इस गुल्लक को तोड़ लूँगी
थोड़ी ही सही
ख़ुशियाँ बटोर लूँगी
#बसयूँही
#मैं_ज़िंदगी
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