31 December 2018

उधेड़बुन

मन की
परतों में ...
तहों में ...
दबा रखी है मैंने
उधेड़बुन ....सारी !!

मैं ..
 हर रात ...
अपने एकांत की 
खोह में..
उधेड़ती हूँ गिरहें ...
कितनी ही सारी !

और फिर 
बुनती हूँ  
एक जामा,
उन्ही उलझनों का 
गिरहों का 
और 
ताक पर रख देती हूँ उन्हें 
किसी बेबसी की अमावस को !!



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