22 April 2016

ज़िन्दगी खेल है शतरंज


ज़िन्दगी खेल है शतरंज का, 
मगर चाल वही चलता हैं। 
शह भी 'उसी' की है, 
और मात 'वही' चलता है। 

कहने को तो एक जिस्म हैं, 
एक है जान लेकिन,
हर शख़्स  एक पल  में
चेहरे कई बदलता है। 

आती  है अब तो सांप के
माथे पे  भी  शिकन।    
जब आदमी  कोई   
ज़बाँ से ज़हर  उगलता है। 

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