ज़िन्दगी खेल है शतरंज का,
मगर चाल वही चलता हैं।
शह भी 'उसी' की है,
और मात 'वही' चलता है।
कहने को तो एक जिस्म हैं,
एक है जान लेकिन,
हर शख़्स एक पल में
चेहरे कई बदलता है।
आती है अब तो सांप के
माथे पे भी शिकन।
जब आदमी कोई
ज़बाँ से ज़हर उगलता है।
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