20 February 2016

मेरी रग रग में कोई नशा सा है

है झुर्रिया  या वक़्त की कोई दास्तान 
चेहरो  पे ये  जो उम्र का पड़ाव सा है

होड़ है हर गम में  मुझको  और दर्द दे
माहौल अपने शहर में  कुछ चुनाव सा है

अबके  मौसम-ए-हिज्र हुआ कुछ गर्म है 
कहीं जल रहा यादों इक  का अलाव सा है 

 
है निशान  मेरी रूह पर  तेरा अब तलक 
तू बीते हुए कल के किसी हरे  घाव सा है




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