आया फागुन, आई होली,
निकली ग्वाल बाल की टोली।
करते मस्ती, हँसी ठिठोली,
बृज में कान्हा खेले होली।
श्याम रंग के श्यामल कान्हा!
राधा को न रंग लगाना।
गोरी देह पे जो रंग लगे तो
सासु, ननदिया देंगी ताना।
पिचकारी से रंग क्यूँ डाला?
बड़े हो नटखट नन्द के लाला !
गुलाल, अबीर लगा राधा को
लाल पीला काहे कर डाला ?
रूठी झूठमूठ की राधा,
मैया यशोदा करुँ दुहाई !
तेरे लाल ने ग्वालन संग,
कोरी चुनरिया लाल भिगाई !
मंद-मंद मलकाये श्याम,
चरणों में दिखे चारो धाम।
भाव विह्वल हुआ गोकुलधाम
धन्य हुए तुम्हे पाकर श्याम !
धन्य हुए तुम्हे पाकर श्याम !
बोली राधा - ले मैं हारी!
जीत हुई, लो श्याम तुम्हारी!
तुझ पे जाऊ मैं वारी वारी
आ गई मैं शरण तुम्हारी
जिस पर प्रेम रंग चढ़ जाए
उस को दूजा रंग न भाये
जब जब ऐसे फागुन आये
बृज में कान्हा रास रचाये
No comments:
Post a Comment