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फिर धुआँ है समा।
मुझको तेरा ग़ुमा
शामें लिखने लगे जैसे
रातों की दास्ताँ
जब से पाया तुझे
हुआ है कुछ मुझे
पैर पड़ते नहीं
अब ज़मीं पर मेरे
बाँहों में थाम ले
बाँहों में थाम ले अपनी
मुझे ऐ आसमां
फिर धुआँ है समा ....
तेरे ही पीछे पीछे
मैं तो यूँ चल पड़ी
तू रुके तू रुकूँ
तू चले तो चलू
तू ही बतला मुझे
तू ही बतला मुझे मेरी
मंज़िले कहाँ
फिर धुआँ है समा ....
रात भर चाँद मुझको
यूँ ही देखा करे
ख़्वाब की तितलियाँ
किसको ढूँढा करे
नींद आँखों में फिर
नींद आँखों में फिर से
आएगी अब कहाँ
धुआँ है ये समा
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