मेरा नाम है " संध्या"!!
अंग्रेजी में लिखे तो Sandhya! कई सारे पुराने दोस्त, मुझे Sand कह कर बुलाते है या फिर Sandy भी कहते है ..... आदत सी भी हो गई है अब तो ।
अब Sand के हिंदी मायने हुए - रेत ! तो कई बार दोस्त मस्ती मस्ती में रेत कहकर भी पुकारते है।
अक्सर कहते है कि हम सब तुम्हे बुलाते है मगर तुम आती ही नहीं कभी , बस छिटक जाती हूँ। हँस पड़ती हूँ उन सबकी ये शिकायते और नाराज़गी सुनकर और बस कह देती हूँ - "रेत ठहरी - फिसल ही जाऊँगी न ....... " और खिलखिलाकर वो ४४० watt वाली हँसी बिखेर देती हूँ।
हर कोई यही पूछता है और मैं भी पूछती हूँ अक्सर, खुद से - " क्यों रेत सी फिसल पड़ी " और मेरे पास कोई जवाब नहीं है इन सवाल का .......
ख़्वाबों में यूँ पल रही हूँ ,
तुझमें मैं ढल रही हूँ . . . .
तेरे ख़्यालों से लेकिन
क्यूँ रेत सी फिसल रही ......
फलक पेअपने मैंने तो तुझको
चाँद था लिख दिया
चाँद था लिख दिया
तेरी ज़मीं पे मैंने तो अपना
सारा जहान रख दिया
तारों पे मैं तो चल रही हूँ ....
बादल पे फिसल रही हूँ ...
तेरे ख़्यालों से लेकिन
क्यूँ रेत सी फिसल रही ......
साँसों की आड़ी तिरछी लकीरों से
तुझको सलाम लिख दिया
ताउम्र तेरी बंदगी को
आयत नाम रख दिया
साँसें जो मुझमें चल रही हैं ...
तेरी ही धड़कन पल रही हैं ...
तेरे ख़्यालों से लेकिन
क्यूँ रेत सी फिसल रही ......
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