टाउनशिप तो २००९ से बन रही थी थोड़ी सी ही बाकी थी
बड़ा अच्छा सा नाम था - वृन्दावन टाउनशिप।
मेरी माँ ,बाबूजी, मैं और मेरा छोटा भाई- भोलू यहाँ 2009 से रहे थे। मेरे बाबूजी और माँ रोज़ दिहाड़ी पे काम करते थे , - तभी तो बनी इतनी बड़ी और इतनी सारी सुन्दर इमारते !!
बहुत सारी इमारते थी करीब २० शायद - मुझे तो इससे आगे की गिनती भी नहीं आती!
बहुत सारी इमारते थी करीब २० शायद - मुझे तो इससे आगे की गिनती भी नहीं आती!
- बस दूसरी तक ही तो पढ़ी हूँ न मैं !!
बड़ी ही सुन्दर टाउनशिप थी - येssssss बड़ी !! हाँ मेरे दोनों हाथो को फैलाऊ - हां उतनी ही बड़ी !!
पता है ? एक झील थी बीचो - बीच और पीछे से एक नहर का पानी आता था उसमे ! उस झील में सफ़ेद बतख, कछुआ और ढेर सारी मछलियाँ तैरती थी। मंदिर था एक। एक बगीचा - बड़े सुन्दर फूल, एक बड़ा सुन्दर झूले वाला बगिचा।
मेरे माँ और बाउजी ऐसी ही कई कॉलोनी बनाते वक़्त मजदूरी करते और फिर बनने के बाद फिर दूसरी जगह चले जाते , फिर तीसरी। ...... बस चलते रहता था - इसलिए कभी पढ़ाई नहीं कर पाई।
हम लोगो को माँ बाउजी ने कहा था जब बिल्डिंग वाले खेलते हो तब वहां नहीं जाना। वैसे भी कहाँ जाना हो पता था। यह भोलू इतना शैतान पुरे वक़्त मुझे उसे सम्भालना पड़ता था जब माँ और बाउजी काम करते थे। रात ९ बजे जब सब बच्चे घर चले जाते तो मैं भोलू और मेरी सहेलियाँ पीनल और हीरल भी देखने आते थे कछुआ बतख. कई बार मगर वॉचमन ही भगा देता था हमें
उस दिन याद है - मैं और भोलू झील के किनारे खड़े थे बतख देखते। एक बड़ी सुन्दर सी आंटी आई। उनकी १० साल की बेटी और ४ साल का बेटा साथ थे। बड़ी सुन्दर थी वो लड़की , मेरी ही उम्र की होगी । बड़ी सुन्दर सी फ्रॉक पहनी थी गुलाबी सी - चमकीले जूते पहने रखे थे।
मैंने अपनी फ्रॉक देखी - उसके जितनी सुन्दर तो बिलकुल ही नहीं थी। पर पिछले हफ्ते ही शनिचर बाजार से दिलवाई थी बाउजी ने मुझे !!
उसका भाई भी बड़ा प्यारा सा था - कितने सुन्दर कपडे पहने थे उसने और उसके जूतो में तो चलने पर लाइट जलती थी !!
मैंने उस लड़के को देखा फिर अपने भोलू को। मेरा भाई भी तो कितना प्यारा है। बड़े गाल सुन्दर ऑंखें -.
तो क्या हुआ जो हमारे कपडे इतने महेंगे और सुन्दर नहीं है पर साफ़ तो है न!
'मैं जब बड़ी हो जाउंगी न तब महंगे कपडे भोलू को दिलाउंगी, पक्का ! ' - मैंने सोचा।
'आर्यन ! छी !! दूर रहो उस लड़के से!!
बड़ी ही सुन्दर टाउनशिप थी - येssssss बड़ी !! हाँ मेरे दोनों हाथो को फैलाऊ - हां उतनी ही बड़ी !!
पता है ? एक झील थी बीचो - बीच और पीछे से एक नहर का पानी आता था उसमे ! उस झील में सफ़ेद बतख, कछुआ और ढेर सारी मछलियाँ तैरती थी। मंदिर था एक। एक बगीचा - बड़े सुन्दर फूल, एक बड़ा सुन्दर झूले वाला बगिचा।
मेरे माँ और बाउजी ऐसी ही कई कॉलोनी बनाते वक़्त मजदूरी करते और फिर बनने के बाद फिर दूसरी जगह चले जाते , फिर तीसरी। ...... बस चलते रहता था - इसलिए कभी पढ़ाई नहीं कर पाई।
हम लोगो को माँ बाउजी ने कहा था जब बिल्डिंग वाले खेलते हो तब वहां नहीं जाना। वैसे भी कहाँ जाना हो पता था। यह भोलू इतना शैतान पुरे वक़्त मुझे उसे सम्भालना पड़ता था जब माँ और बाउजी काम करते थे। रात ९ बजे जब सब बच्चे घर चले जाते तो मैं भोलू और मेरी सहेलियाँ पीनल और हीरल भी देखने आते थे कछुआ बतख. कई बार मगर वॉचमन ही भगा देता था हमें
उस दिन याद है - मैं और भोलू झील के किनारे खड़े थे बतख देखते। एक बड़ी सुन्दर सी आंटी आई। उनकी १० साल की बेटी और ४ साल का बेटा साथ थे। बड़ी सुन्दर थी वो लड़की , मेरी ही उम्र की होगी । बड़ी सुन्दर सी फ्रॉक पहनी थी गुलाबी सी - चमकीले जूते पहने रखे थे।
मैंने अपनी फ्रॉक देखी - उसके जितनी सुन्दर तो बिलकुल ही नहीं थी। पर पिछले हफ्ते ही शनिचर बाजार से दिलवाई थी बाउजी ने मुझे !!
उसका भाई भी बड़ा प्यारा सा था - कितने सुन्दर कपडे पहने थे उसने और उसके जूतो में तो चलने पर लाइट जलती थी !!
मैंने उस लड़के को देखा फिर अपने भोलू को। मेरा भाई भी तो कितना प्यारा है। बड़े गाल सुन्दर ऑंखें -.
तो क्या हुआ जो हमारे कपडे इतने महेंगे और सुन्दर नहीं है पर साफ़ तो है न!
'मैं जब बड़ी हो जाउंगी न तब महंगे कपडे भोलू को दिलाउंगी, पक्का ! ' - मैंने सोचा।
'आर्यन ! छी !! दूर रहो उस लड़के से!!
'दिखता नहीं........ कितना गन्दा है वो !!'
" ऐ सुनो, अपने भाई को यहाँ से ले जाओ '- वो लड़की बोली।
मैंने भोलू को अपने पास चिपका लिया और कातर निग़ाहों से देखने लगी।
उस लड़की की माँ बोली - 'बेटा सिम्मी! ऐसे नहीं बोलते ! bad manners ! - वो भी हम जैसे ही है न - ओके ??'
मैंने भोलू को अपने पास चिपका लिया और कातर निग़ाहों से देखने लगी।
उस लड़की की माँ बोली - 'बेटा सिम्मी! ऐसे नहीं बोलते ! bad manners ! - वो भी हम जैसे ही है न - ओके ??'
लड़की ने मुह बिचकाया और अपने भाई का हाथ पकड़ उसे बतख दिखाने लगी। फिर बड़ी चहकती हुई मछलियों को सूखी ब्रेड, जो अपने साथ घर से लाई थी , खिलाने लगी ।
भोलू , ब्रेड देख , खाने को मचल गया !! मेरा हाथ छुड़ा कर लड़की की तरफ भोलू भागा और जाकर उस लड़की की फ्राक खीचने लगा और अपने छोटे छोटे हाथ फैला दिये ।
लड़की चिल्लाई -' ऐ छी ! गंदे लड़के ......... दूर रहो मुझसे !!!!
' मेरे कपड़ो को गन्दा कर दिया तुमने ''- कहते हुए मुझे घूरा -और भोलू को धक्का दे दिया।
भोलू गिर गया , रोने लगा। मैं भोलू को वहां से खीच ले आई।
लड़की की माँ बोली - 'कोई बात नहीं सिम्मी ! थोड़ी सी ब्रेड उस बच्चे को दे दो '
लड़की मुह बिचकाती हुई बोली - 'पर मम्मा !! ये तो सूखी हुई बासी ब्रेड है ना -तीन दिन पुरानी ! - यह थोड़ी कोई खाता है !'
लड़की की माँ बोली - 'कोई बात नहीं सिम्मी ! थोड़ी सी ब्रेड उस बच्चे को दे दो '
लड़की मुह बिचकाती हुई बोली - 'पर मम्मा !! ये तो सूखी हुई बासी ब्रेड है ना -तीन दिन पुरानी ! - यह थोड़ी कोई खाता है !'
उसकी मम्मी ने मुस्कुराते हुए कहा - 'बेटा, ये लोग सब खाते है !' ये कहते हुए उन्होंने भोलू को दो ब्रेड के टुकड़े पकड़ा दिए ।
भोलू की आँखों में चमक आ गयी - एक टुकड़ा मुझे देकर बोला - ' का लो जीजी ' और खुद दूसरा टुकड़ा खाने लगा ।
भोला को ख़ुशी ख़ुशी ब्रेड खाते देख मुझे समझ नहीं आया - मैं हँसू या रोऊँ !!
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