अब जब
पलट कर देखती हूं
तो पाती हूं
आवाज़ बेहद
मीठी मिली थी मुझे
मगर मेरे शब्द
गोखरू से रहे हमेशा
बींधते रहे
लहूलुहान करते गए
उस प्राण और
देह को,
जो मेरे प्रेम में
लिप्त था
और फिर
नादान बन
मैं उन्हीं प्रेम की
विथियों में
मृत प्रेम को
पुचकार के सतत
पुकारती रही
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