16 February 2016

हर जिस्म है छिला सा



हर   जिस्म है छिला  सा 
 हर   रूह  है छली  सी
दिल ज़ार ज़ार रोए
पर होंठो पे हँसी है रहती 


यहाँ हर बात है छलावा!
 हर ओर बस दिखावा !
हर इंसान की शक्ल में
 दस बीस  शक्लें है  रहती  !


कोई नहीं किसी का !
क्या दोस्त क्या है दुश्मन
हर आस्तीन  यहाँ बस
खंजर लिए है रहती













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